1 यूहन्ना के पत्री का परिचय; 1 John Introduction

 

1 यूहन्ना के पत्री मे उद्धार के आश्वासन एंव निश्चयता और चेतावनीया।

  • यूहन्ना की पहली पत्री बाइबल के बहुत ही महत्वपूर्ण पत्री है, जहा उद्धार के आश्वासन के विषय मे उल्लेख किया गया है, सच्चा विश्वासीयों का परमेश्वर के साथ सहभागिता और संबंध के वास्तविकता के विषय मे।
  • लेकिन क्या है इस आश्वासन का आधार? कि हम वाकई मे उद्धार प्राप्त है? कि हमारा पापों को क्षमा किया गया है? और बाइबल का जीवित परमेश्वर के साथ हमारा मेल मिलाप हुआ है?
  • पवित्रशास्त्र के अनुसार, उद्धार केवल और केवल प्रभु यीशु मसीह के समाप्त कार्य; उनके जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान में विश्वास करने के द्वारा होता है। लेकिन हम यह कैसे जानेंगे कि हमारा विश्वास झूठा नहीं है? कि हमारा विश्वास सच्चा है? कि हम उद्धार का झूठे आश्वासन में नहीं जी रहे है?
  • जो लोग मसीह में विश्वास करने का दावा करते हैं, लेकिन अपने कार्यो और जीवन यात्रा से मसीह का अस्वीकार और इन्कार करते हैं, उनके खिलाफ पवित्रशास्त्र कई गंभीर और भयानक चेतावनियों को प्रदान करता है ।
  • उद्धार केवल अनुग्रह से, और केवल यीशु पर विश्वास के द्वारा है, लेकिन हम कैसे जानेंगे कि हम में सचमुच सच्चा विश्वास है? हम कैसे जानेंगे कि हमने वास्तविक रीति से सच्चा विश्वास किया है?

पवित्रशास्त्र आह्वान करता है कि हम अपने अपने विश्‍वास को जाँचे और परखे।

कुरिन्थुस की कलीसिया को पौलुस के द्वारा लिखा गया पत्री से यह प्रतित होता है कि कुरिन्थुस की कलीसिया मे कुछ भ्रष्टता प्रचलित था,  और वहा कलीसिया के लोग परिपक्व नही थे। और इस पत्री से दो मुख्य निम्नलिखित वास्तविकताए और संभावनाए सामने आते है।

  1. अपरिपक्व विश्वासीया जो एक समय के लिए गलती में पड़ गए थे, और उन्हें सच्ची पवित्रता एंव ईश्वर-भक्ति के मार्ग पर वापस लाने के लिए अनुशासन भरा फटकार और निर्देश दोनों की आवश्यकता थी।
  2. दूसरी, बहुत संभावित यह कि कम से कम कुछ सदस्य अभी भी अपरिवर्तित थे। वे “शारीरिक अभिलाषाओ” मे चल रहे थे, शरीर की अभिलाषाओं में लिप्त थे, और परमेश्वर के आत्मा की बातों को स्वीकार करने में असमर्थ थे। केवल समय मे और पौलुस की द्वारा आता फटकार के प्रति उनकी उचित प्रतिक्रिया ही उनके विश्वास की सत्यता को प्रदर्शित करेगी।
  • जब हम उद्धार के आश्वासन के विषय में बात करते हैं, हमें यह भी जानना है और इस बात का पुष्टि और स्पष्टता भी होना है कि एक सच्चा मसीही विश्वासी इस जीवन में सिद्ध व्यवहारिक पवित्रीकरण को उपलब्ध नहीं करेगा।
  • शरीर की क्रिया इस जीवन में, इस शरीर में संपूर्ण रूप से मिट नहीं जाएगा। जब तक न हमे महिमा के शरीर दिए जाए, एक सच्चा विश्वासी के जीवन में पाप के प्रति संघर्ष और लड़ाई चलते ही रहेगा, एक सच्चा विश्वासी को प्रतिदिन सच्चा पश्चताप एंव मन फिराव की आवश्यकता होते ही रहेगा, जितना दिन हम इस शरीर में है।
  • लेकिन यह भी सच है कि, सबसे कमजोर सच्चा विश्वासी जो पाप के खिलाफ संघर्ष करता है और पवित्रता में केवल थोड़ा- थोड़ा करके प्रगति करता है और एक अपरिवर्तित या झूठे परिवर्तित इन्सान जो मसीह में विश्वास का दावा करते हैं, लेकिन संसार के अनुरूप जीता है और पाप के प्रति कोई सच्चा शोक और कोई सच्चा मन फिराव और पश्चाताप से चिन्हित नही है। इन दोनो व्यक्तिओ मे बहुत बड़ा भिन्नता होते है।
  • अतः पौलुस कहता है अपने आप को परखो कि विश्‍वास में हो कि नहीं। अपने आप को जाँचो। क्या तुम अपने विषय में यह नहीं जानते कि यीशु मसीह तुम में है? नहीं तो तुम जाँच में निकम्मे निकले हो 2 कुरिन्थियों 13:5
  • यह आज हमारे लिए भी लागू होता है कि हम अपने अपने विश्वास को जाँचे और परखे।

स्वंय का विश्वास को जांचने और परखने का मानक/ आधार।

  • परमेश्वरप्रेरित, विश्‍वासयोग्य, अधिकारपूर्ण, अचूक मानक क्या है, जिसके द्वारा हम अपने विश्वास का सत्यता का मुल्यांकन और जांच और परख कर सकते हैं?
  • सबसे पहले, उद्धार के आश्वासन के लिए हम यूं ही अपने हृदय के भावनाओं को सम्पूर्ण रूप से भरोसा न करें, क्योंकि, “मन (हृदय) तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?” यिर्मयाह 17:9
  • उद्धार के आश्वासन के लिए हम एक दूसरे से तुलना न करे।
  • एक दूसरे के राय मे भरोसा न करे, यद्यपि अच्छा राय मददगार हो सकते है, लेकिन वह उद्धार का आश्वासन का बुनियाद नही है।कुछ राय ऐसे भी हो सकते है जो गलत है और वह अपने राय के द्वारा आप पर ऐसे बोझ डाल दे जो वे खुद कभी उठा नही सके।
  • तो फिर, हमारा मानक क्या होना चाहिए? हमें अपने विश्वास की सत्यता और अपने हृदय परिवर्तन की वास्तविकता का मूल्यांकन किस के बुनियाद पर करना चाहिए?
  • हमें परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि इस सत्य को परमेश्वर ने अपने पवित्रशास्त्र मे स्थापित किए हैं, और पवित्रशास्त्र ही वह निर्णायक मानक और आधार है जिसके बुनियाद पर हम अपने विश्वास का सत्यता और ह्रदय परिवर्तन का वास्तविकता को स्पष्ट रूप से जाँच और परख सकते हैं।
  • परमेश्वर ने इन सत्य को विशेषकर यूहन्ना की पहली पत्री मे रखे है, 1 यूहन्ना का पत्री को इसी मुख्य उद्देश्य से लिखा गया था।
  • 1 यूहन्ना 5:13 “मैं ने तुम्हें, जो परमेश्‍वर के पुत्र के नाम पर विश्‍वास करते हो, इसलिये लिखा है कि तुम जानो कि अनन्त जीवन तुम्हारा है।
  • यूहन्ना ने इस पहली पत्री को इसलिए लिखा ताकि जिन लोगों ने वास्तव में परमेश्‍वर के पुत्र के नाम पर विश्वास किये है, उन्हें पूरा भरोसा और आश्वासन हो कि उन्हें अनन्त जीवन दिया गया है।
  • और इस पहला पत्री मे यूहन्ना कुछ बुनियादी और महत्वपूर्ण परीक्षणों या चिन्हों, चरित्रों की एक श्रृंखला को रखता है जिसके द्वारा सच्चा विश्वासीया अपने विश्वास के सत्यता को इन चिन्हों, चरित्रों से जाँच सके और उद्धार का आश्वासन को प्राप्त कर सके, परमेश्वर के अचूक और अधिकारपूर्ण वचन के आधार पर
  • इन सब बातो को ध्यान और मन मे रखते हुए आइए हम यूहन्ना की पहली पत्री की अध्ययन को आरंभ करते है

 यूहन्ना की पहली पत्री का परिचय।

  1. लेखक:- इस पत्री मे लेखक का नाम उल्लेख नही है, लेकिन प्रारंभिक कलीसिया की मजबूत एंव निरंतर गवाही प्रेरित यूहन्ना को इस पत्री के लेखक के रूप मे स्थापित करता है।
  2. तारीख:- निर्दिष्ट और अचूक रूप से यह कह पाना असंभव है, लेकिन सारा सत्य को मद्देनजर रखते हुए तारीख वर्ष AD 80 (ईसवी सन्) से शुरुआती AD 90 (ईसवी सन्) के बीच होगा ।
  3. श्रोता:- निर्दिष्ट रूप से यह उल्लेख नही किया गया है कियह पत्री किनको लिखा गया था, इसलिए इस पत्री को “General epistle” (सार्वजनिक/ सामान्य पत्री) कहा जाता है। लेकिन हम जानते है कि यह विश्वासीओ को संबोधित किया गया था (1 यूहन्ना 5:13 ” मैं ने तुम्हें, जो परमेश्‍वर के पुत्र के नाम पर विश्‍वास करते हो, इसलिये लिखा है…. ), संभावित एशिया माइनर (आधुनिक युग के तुर्की का प्रमुख हिस्सा) के कलीसियाओ को।
  4. पत्री का बड़ा चित्रण/ रुपरेखा

    1. परिचय (1:1-4)
    2. आश्वासन” सिद्धांतिक और नैतिक/व्यवहारिक जीवन की बुनियादी जाँच और परीक्षण के द्वारा आता आश्वासन।  (1:5-5:12)

      सहभागिता की बुनियादी जाँच और परीक्षण के माध्यम से आता आश्वासन (1:5-2:17)

      “विश्वास” को लेकर संघर्षों के बीच से आता आश्वासन (2:18-4:6)
      सच्चा प्रेम का होने का प्रमाण से आता आश्वासन (4:7-5:5)
      पवित्र आत्मा का गवाही से आता आश्वासन (5:6-12)

    3. निष्कर्ष/ Conclusion (5:13-21)
  5. झूठे शिक्षकें (मसीह विरोधी)

    • प्रेरित यूहन्ना इस पत्री मे कलीसियाओ के सच्चा विश्वासी का उल्लेख करते हैं जिनके विषय में वह “हम” कहकर संबोधित करते हैं (1 यूहन्ना 2:19) , और साथ ही साथ वह उनके विषय में भी बात करता है जो इस “हम” में से निकला है, और “वे” बन गए है,और इस संदर्भ में “वे” (False teachers) “हम” में से निकला है, और जो सत्य के नहीं है, जो झूठ के पीछे चलते हैं, वे मसीही विरोधी है। जो स्वंय को सत्य का होने का दावा करते है लेकिन वे झूठ के पीछे चल रहे है।
    • वे लोग परमेश्वर के सत्य के खिलाफ और प्रेरितिक अधिकार के खिलाफ विद्रोह कर कलीसियाओ मे विभाजन और समस्याओ को उत्पन्न कर रहे थे । यद्यपि वे कलीसियाओ से और ‘’हम’’ मे से निकले है, लेकिन उसके बावजूद वे उन कलीसियाओं तक जिन कलीसियाओ को यूहन्ना लिख ​​रहा है, पहुँच और प्रभाव की तलाश करना जारी रखते हैं।
    • और जब भी आपके पास ऐसे लोग होते हैं जो वास्तव मे झूठ का अनुसरण करते हैं लेकिन सत्य का अनुसरण करने का दावा करते हैं, तो कलीसियाओ के भीतर जो “हम” लोग है उनमे संदेह और प्रश्न उठता है, “क्या हम वास्तव में सत्य मे चल रहे है? या नहीं?’’ और इसी मुद्दे और समस्या को प्रेरित यूहन्ना अपने इस पत्री के द्वारा सामना और संबोधित करता है।
  6. उदेश्य :- यूहन्ना ने इस पत्री को लिखा ताकी जो परमेश्‍वर के पुत्र के नाम पर विश्‍वास करते है वे जाने और आश्वासित हो सके कि उनमे अनन्त जीवन है। प्रेरित यूहन्ना ने इस पत्री मे उद्धार के आश्वासन के सत्य की घोषणा की जिसने सच्चे विश्वासियों को अनन्त जीवन का, और परमेश्वर के साथ सहभागिता के होने का आश्वासन प्रदान किया।

    • 1 यूहन्ना 5:13 “मैं ने तुम्हें, जो परमेश्‍वर के पुत्र के नाम पर विश्‍वास करते हो, इसलिये लिखा है कि तुम जानो कि अनन्त जीवन तुम्हारा है।
    • यूहन्ना विश्वासीयों को संबोधित कर रहा है, जो विश्वास करते है। झूठे शिक्षक जो परमेश्वर से होने का दावा करते है लेकिन झूठे शिक्षा का प्रचार करते है, प्रचलित थे, जिसके वजह से सच्चा विश्वासीया संदेह मे थे, कि’’ क्या हम मे वाकई मे अनन्त जीवन है?’’ और यूहन्ना लिखता है, कि यही मेरा उद्देश्य है कि विश्वासी के रूप में आपके पास अनन्त जीवन का आश्वासन हो। और यह कि अनन्त जीवन यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर को जानने, और उसके साथ सहभागिता का एक संबंध है।
    • जैसे जैसे यूहन्ना मसीह का सत्य को इन विश्वासीयों को बता रहे है, ताकी यह विश्वासी लोग उस सत्य पर विश्वास करे, और यूहन्ना और बाकी विश्वासीयों के साथ सहभागिता मे बने रहे, और सुनिश्चित हो की इस सहभागिता मे वे लोग पिता परमेश्वर और यीशु मसीह के साथ भी सहभागिता मे बने है। (1 यूहन्ना 1:3)
    • यूहन्ना की पहली पत्री कलीसिया मे अपरिवर्तित व्यक्ति (झूठे विश्वासी) के झूठे आश्वासन को भी उजागर करता है, जो मसीह में विश्वास करने का दावा तो करता है लेकिन उनके जीवनो मे सच्चे हृदय परिवर्तन के निशान, फल और लक्षण नही है।

उद्धार एंव उद्धार के आश्वासन को लेकर दो संभावनाए।

इन दो निम्नलिखित संभावनाओं मे से कोई एक हमारा जीवनों का भी वास्तविकता है आज।

  1. कि हम परमेश्वर के सच्चा और वास्तविक सन्तान हैं जो उसके प्रकाशित इच्छा और वचनो के अनुसार चलने से समय समय पर भटक जाते हैं और हमारे जीवन में सच्चा पश्चाताप की आवश्यकता है, और यदि हम वास्तविक रीति से  दैनन्दिन जीवन मे मन फेरकर परमेश्वर के पास आते हैं और इस परिवर्तन मे बढ़ते जाते है, तो इस पर एक महान आशा है कि हमने वाकई में सच्चा विश्वास किए हैं और अनन्त जीवन हमे दिया गया है।
  2. कि हम अभी तक सच्चा ह्रदय परिवर्तित व्यक्ति नहीं है, कि हम अभी तक नया जन्म प्राप्त व्यक्ति नहीं है। और हमारा अंगीकार और विश्वास का दावा शुरू से झूठा रहा है, और इस संदर्भ में परमेश्वर हम पर अनुग्रह करें, और हमे अपना इस सच्चा स्थिति को पहचानना है, और परमेश्वर के वचन कहता है, हमे अपने पापो से मन फेरकर परमेश्वर को पुकारना है कि वे हम पर दया करे और हमे बचाए, “क्योंकि, “जो कोई प्रभु का नाम लेगा (प्रभु को पुकारेंगे), वह उद्धार पाएगा।” रोमियों 10:13

अतः मसीह के पास आए और पाप क्षमा एव उद्धार के लिए केवल उनपर विश्वास करे, यीशु कहता है, “जो कुछ पिता मुझे देता है वह सब मेरे पास आएगा, और जो कोई मेरे पास आएगा उसे  मैं कभी न निकालूँगा।” यूहन्ना 6:37

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