क्रिसमस मे ख्रीस्त के प्रती सटीक एंव उचित मनोभाव, मानसिकता और प्रतिक्रिया।

क्रिसमस मे, परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के इस पृथ्वी पर मनुष्य बनके आने के प्रति हमारा दृष्टिकोण, मानसिकता, मनोभाव, प्रतिउत्तर, प्रतिक्रिया और रवैया कैसा होना चाहिए? बाइबल हमें मसीह के देह-धारण के विषय में सही मानसिकता, दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया के बारे में क्या बताती है? क्या हमने इस विषय पर पहले सोचे है कि बाइबल के अनुसार क्रिसमस के दौरान कैसा एंव क्या मनोभाव और प्रतिक्रिया हमारा होना चाहिए?

ऐसा प्रदर्शित होता है कि कुछ लोगों के लिए क्रिसमस की भावना और मनोभाव एक दूसरे से क्रिसमस कार्ड में व्यक्त की जाती है जो कल्याण की भावना व्यक्त करती है, कुछ लोगों के लिए क्रिसमस की भावना और मनोभाव दोस्तों की संगति मे है, या उपहारों के आदान-प्रदान करने मे, या पार्टी की भावना में पाई जाने वाली खुशी का एक दृष्टिकोण है, खाना खाने मौज करने इत्यादि के द्वारा, हालाँकि, कई लोगों के लिए क्रिसमस की भावना गहरे दुःख की मनोभाव होता है क्योंकि आपके जीवन में समय और परिस्थितिया सटीक नही चल रहा होता है।

परन्तु क्या है क्रिसमस का सच्चा मनोभाव और प्रतिक्रिया? आइए इस सत्य को परमेश्वर के वचन से देखते है। और आप परमेश्वर के वचन मे यह देख पायेंगे कि जितने भी व्यक्तिया क्रिसमस के समय ख्रीस्त के प्रति सटीक और उचित प्रतिक्रिया को दिए थे उनमे से सब ने एक ही प्रकार का प्रतिक्रिया को प्रदर्शित किये थे।

आइए इस सत्य को समझने के लिए बाइबल मे से तीन ऐसे अंशों का सर्वेक्षण करते है, और सबसे पहले स्वर्गीय दूतों की ओर नजर डालते है, और फिर हम गड़ेरियों की ओर दृष्टि डालेंगे और आखिरकार हम कई ज्योतिषी के मनोभाव और प्रतिक्रिया को देखंगे।

1. स्वर्गीय दूतों

लूका 2:8-14 ‘’8और उस देश में कितने गड़ेरिये थे, जो रात को मैदान में रहकर अपने झुण्ड का पहरा देते थे। 9और प्रभु का एक दूत उनके पास आ खड़ा हुआ, और प्रभु का तेज उनके चारों ओर चमका, और वे बहुत डर गए। 10तब स्वर्गदूत ने उनसे कहा, “मत डरो; क्योंकि देखो, मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूँ जो सब लोगों के लिये होगा, 11कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है। 12और इसका तुम्हारे लिये यह पता है कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे।” 13तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साथ स्वर्गदूतों का दल परमेश्‍वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया, 14“आकाश में परमेश्‍वर की महिमा और पृथ्वी पर उन मनुष्यों में जिनसे वह प्रसन्न है, शान्ति हो।

यीशु मसीह के पृथ्वी पर जन्म के संबंध में स्वर्गदूतों की क्या प्रतिक्रिया है? परमेश्वर की स्तुति और आराधना करना, परमेश्वर की महिमा करना है। यही है क्रिसमस के वह सटीक एंव बाइबल आधारित प्रतिक्रिया और मनोभाव, और वास्तव मे वह एक क्रिसमस की सच्चा मनोभाव और प्रतिक्रिया है, परमेश्वर का, मसीह का “आराधना और प्रशंसा” करना।

पहले क्रिसमस में भाग लेने वाले सभी व्यक्तियों में क्रिसमस की मनोभाव और क्रिसमस के प्रतिक्रिया था परमेश्वर की स्तुति, धन्यवाद, और महिमा करना; एक शब्द में, वह है परमेश्वर का “आराधना” करना हालाँकि यीशु ख्रीस्त के प्रति ऐसे मनोभाव और रवैया हमारा हर रोज, प्रतिदिन रहना है, लेकिन इस सत्य का हमे क्रिसमस के दौरान सबसे अधिक स्मरण दिलाने की आवश्यकता है, जब मसीह के पृथ्वी मे आने को लेकर सबसे अधिक गलत प्रतिउत्तर और प्रतिक्रियाएँ दिये जाते है।

2. गड़ेरिये

लूका 2:15-20 ‘’15जब स्वर्गदूत उनके पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियों ने आपस में कहा, “आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें।” 16और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को, और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। 17इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उनसे कही गई थी, प्रगट की, 18और सब सुननेवालों ने उन बातों से जो गड़ेरियों ने उनसे कहीं आश्‍चर्य किया। 19परन्तु मरियम ये सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही। 20और गड़ेरिये जैसा उनसे कहा गया था, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्‍वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए।;”

जैसे स्वर्गदूतों मे थे, यहा भी हम गड़ेरियों के द्वारा क्रिसमस मे ख्रीस्त के प्रति एक ही प्रकार के मनोभाव और प्रतिक्रिया को देख पाते है और वह है परमेश्वर का स्तुति प्रशंसा करते हुए उनका आराधना करना।

अब मैं निश्चित रूप से कहूंगा कि बाइबल मे यीशु मसीह के जन्म के समय मे जुड़े हुए व्यक्तियों पर एक छोटी सी नजर डालने के बाद, यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाएगा कि क्रिसमस की सच्ची मनोभाव, मानसिकता, दृष्टिकोण, भावना और प्रतिक्रिया क्या है? क्रिसमस की सच्चा मनोभाव और प्रतिक्रिया है परमेश्वर की स्तुति प्रशंसा करना, परमेश्वर की आराधना करना, परमेश्वर को धन्यवाद देना, परमेश्वर की महिमा करना। यह एक परमेश्वर केंद्रित ध्यान है, यह परमेश्वर केंद्रिय विषय है, यह परमेश्वर की ओर दृष्टि रखना है।

देखिए मानवीय रिश्तें अच्छा विषय है, लेकिन क्रिसमस का सच्चा मनोभाव मानवीय स्तर के रिश्तों पर ध्यान केंद्रित नहीं है। परिवार के लोगों और दोस्तों और भोजन और प्रेमपूर्ण उपहार आदान-प्रदान वगैरह एक अच्छा विषय है, लेकिन वह इन व्यक्तियों का ध्यान का केंद्र नहीं है, उनका ध्यान परमेश्वर की ओर है, उनका बुनियादी केन्द्र यीशु ख्रीस्त का आराधना और प्रशंसा और परमेश्वर को धन्यवाद और आराधना करने पर है।

3. कई ज्योतिषी

मत्ती 2:1-2 ‘’1हेरोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के बैतलहम में यीशु का जन्म हुआ, तो पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे, 2“यहूदियों का राजा जिसका जन्म हुआ है, कहाँ है? क्योंकि हमने पूर्व में उसका तारा देखा है और उसको प्रणाम करने आए हैं।

कई ज्योतिषी यीशु ख्रीस्त को प्रणाम करने आये थे, यह प्रणाम शब्द सम्पूर्ण रूप से दण्डवत करते हुए आराधना करना को दर्शाता है, यह इस प्रकार का आराधना है जिसका योग्य केवल परमेश्वर अकेला है।

प्रत्येक व्यक्तित्व जिसके पास मसीह के लिए सही प्रतिक्रिया था, और पवित्रशास्त्र के अनुसार क्रिसमस का सच्ची भावना और मनोभाव था, उन सभी का एक ही प्रतिक्रिया था, और वह है परमेश्वर का सच्चा आराधना और स्तुति करना, जिस परमेश्वर ने उद्धारकर्ता को भेजकर मनुष्यों को बचाने के लिए झुके। यह उन सभी का सामान्य प्रतिक्रिया था।

यहां तक ​​कि एक अविश्वासी भी इसे देख सकते थे। कपटी एंव अहंकारी हेरोदेस ने, यद्यपि उसका यह इरादा नहीं था, उसने ज्योतिषियों से यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, “जाओ, उस बालक के विषय में ठीक–ठीक मालूम करो, और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो, लेकिन क्यो? ताकि मैं भी आकर उस को प्रणाम करूँ।” (मत्ती 2:7)। यीशु मसीह के जन्म के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में इससे कोई विचलन नहीं है। इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिक्रिया और रवैया समान था।

अब अगर क्रिसमस किसी विषय का समय है, तो यह परमेश्वर का स्तुति, प्रशंसा, आराधना, और महिमा करने का समय है। और यदि मसीह की सच्चा बाइबल आधारित आराधना करने के लिए समय नहीं है, तो क्रिसमस का पूरी तरह से दुरुपयोग किया गया है, और गलत तरीके से इसे समझा गया है, और गलत तरीके से इसे प्रस्तुत किया गया है, और गलत तरीके से इसे लागू किया गया है।

4. बाइबल अनुसार आराधना को समझना

अब क्योंकि बाइबल के अनुसार ” परमेश्वर का आराधना करना” क्रिसमस का मुख्य प्रतिक्रिया, केन्द्र और मनोभाव है, तो हमारे लिए यह आवश्यक बन जाता है कि हम इस बाइबल आधारित आराधना को समझे, ताकी हम स्वंय भी इसमे समर्पित रह सके।

तो, बाइबल के अनुसार आराधना क्या है?  बहुतो को लगता है कि आराधना केवल संगीत है, अपने भावनाओ मे बह जाकर कुछ गीतों को गाना है, या क्रिसमस के  गीतों को गाना, इत्यादि। देखिए सटीक समझ और सटीक मनोभाव के साथ बाइबल आधारित गीतों को गाना आराधना का एक अंश हो सकता है, लेकिन  बहुत आवश्यक यह है कि हम आराधना के मुख्य तथ्य और विशेषताओं को बाइबल के अनुसार समझे। आइए अब समझने की कोशिश करें कि सच्ची और बाइबल आधारित आराधना क्या है? और यह कहा से उत्पन्न होते है? यीशु मसीह ने कहा था, परमेश्‍वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसकी आराधना करनेवाले आत्मा और सच्‍चाई से आराधना करें। यूहन्ना 4:24

  • बाइबल आधारित आराधना की पहली विषय स्पष्ट है, लेकिन अक्सर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है: सच्चे आराधकों (आराधना करने वालों) को सबसे पहले उद्धार प्राप्त व्यक्ति होना आवश्यक है।  इस महत्वपूर्ण विषय को कलीसियायों में काफी हद तक भुला दिया जाता है, जहा बाइबल की सत्य पर केंद्रित होने के बजाय मनुष्यों के भावनात्मक अनुभवों पर अधिक जोर दिया जाता हैं। “परमेश्वर के करीब महसूस करना” पर्याप्त नहीं है – क्योंकि सच्ची आराधना बुनियादी रूप से हमारी भावनाओं पर आधारित नहीं है, बल्कि बाइबल के सत्य पर आधारित है। और जिस मनुष्य मे नया जन्म अतः उद्धार के द्वारा परमेश्वर के सत्य के प्रति समर्पित और समर्पण और अधीनता नहीं है, वह संभवतः परमेश्वर का आराधना नहीं कर सकते।
  • ”आराधना” केवल ईश्वरीय-शब्दों या संगीत ध्वनियों के साथ एक भावनात्मक अभ्यास नहीं है, जो कुछ प्रकार के भावनाओं को प्रेरित करती है। आराधना निश्चित रूप से किसी भी तर्कसंगत विचार एंव समझ या बाइबल के सत्य से अलग मानवीय जुनून का रहस्यमय ऐहसास नहीं है। सच्ची आराधना परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए सत्य से प्रेरित आराधना और प्रशंसा की प्रतिक्रिया है। भजन 145:18 कहता है, जितने यहोवा को पुकारते हैं, अर्थात् जितने उसको सच्‍चाई से पुकारते हैं, उन सभों के वह निकट रहता है। स्पष्ट रूप से, यहोवा को स्वीकार्य उपासना के लिए सत्य पूर्व आवश्यक वास्तविकता है, पहले सत्य मे केन्द्रित होना और जड़ित रहना आवश्यक है।
  • यहोवा का सच्चाई और सत्य हमेशा सच्चा आराधना के केंद्र में होती है।  हर प्रकार का उत्साह या भावना जो सत्य से अटूट रूप से जुड़ा नहीं है, वह आखिरकार अर्थहीन है। यदि आराधकों (आराधना करने वालों) का हृदय पवित्रशास्त्र की सत्य पर आधारित नहीं है, तो यह आराधना नहीं है।

5.  सच्चा बाइबल आधारित प्रचार/ उपदेश और आराधना।

  • पासवान जॉन स्टॉट लिखते है, ‘’वचन और आराधना एक दूसरे के अभिन्न  (न टूटने वाला) अंग हैं। सम्पूर्ण आराधना परमेश्वर के प्रकाशन के प्रति एक बुद्धिमान और प्रेमपूर्ण प्रतिक्रिया है, क्योंकि यह उसके नाम की आराधना है। अतः उपदेश के बिना स्वीकार्य उपासना असम्भव है। क्योंकि उपदेश का अर्थ है प्रभु का नाम प्रकट करना, और आराधना का अर्थ है प्रभु के नाम का प्रशंसा करना। आराधना में किसी भी प्रकार का विदेशी घुसपैठ होने से दूर, ‘’वचन का पढ़ना और उपदेश’’ वास्तव में इसके लिए अपरिहार्य (अनिवार्य) है। इन दोनों का तलाक नहीं हो सकता। वास्तव में, उनका अप्राकृतिक तलाक (या दूरी) के कारण से अधिकांश आधुनिक युग के आराधना निम्न स्तर पर है। हमारी आराधना निम्न है क्योंकि परमेश्वर के विषय में हमारा ज्ञान और समझ निम्न है, और परमेश्वर के बारे में हमारा ज्ञान और समझ खराब है क्योंकि हमारा उपदेश ख़राब है। लेकिन जब परमेश्वर का वचन अपनी संपूर्णता में समझाया जाता है, और मण्डली को जीवित परमेश्वर की महिमा की झलक दिखाई देने लगती है, तो वे उसके सिंहासन के सामने गंभीर विस्मय और हर्षित आश्चर्य के साथ झुक जाते हैं। वह बाइबल आधारित उपदेश है, जो इसे पूरा करता है, परमेश्वर के आत्मा का शक्ति में परमेश्वर के वचन की उद्घोषणा। इसीलिए उपदेश अद्वितीय और अपूरणीय (irreplaceable) है।”
  • परमेश्वर की सच्चा आराधना के लिए पवित्रशास्त्र ही एकमात्र आधार है। इसीलिए पौलुस ने तीमुथियुस से इसे अपने सेवकाई के मध्यविंदु और केंद्र के रूप में तय करने का आग्रह किया: “..मसीह यीशु का अच्छा सेवक ठहरेगा; और विश्‍वास और उस अच्छे उपदेश की बातों से, जो तू मानता आया है, तेरा पालन–पोषण होता रहेगा। पर अशुद्ध और बूढ़ियों की सी कहानियों से अलग रह; और भक्‍ति की साधना कर। जब तक मैं न आऊँ, तब तक पढ़ने और उपदेश देने और सिखाने में लौलीन रह।” (1 तीमुथियुस 4:6-7, 13) उसी तरह, हमें अपना आध्यात्मिक पोषण मुख्य रूप से हमारे स्वंय के भावनात्मक अनुभवों और अच्छी भावनाओं में नहीं, बल्कि सच्चा विश्वास और ठोस बाइबल आधारित शिक्षण के वचनों में खोजने की जरूरत है।
  • लेकिन जैसा कि पासवान जॉन मैकआर्थर बताते हैं, ‘’सच्ची आराधना विश्वसनीय  उपदेश (प्रचार) का स्वाभाविक प्रतिफल या विस्तार है। यदि हमें सच्चाई से आराधना करनी है, और यदि परमेश्वर का वचन सत्य है (और वह है), तो हमें परमेश्वर के वचन को समझकर आराधना करनी चाहिए। यही कारण है कि व्याख्यात्मक उपदेश (प्रचार) और परमेश्वर के वचन की व्यवस्थित शिक्षा इतनी महत्वपूर्ण है। कुछ प्रचारक ऐसे उपदेशों में विशेषज्ञ प्रतीत होते हैं जो केवल मामूली तौर पर बाइबल आधारित होते हैं, लेकिन मण्डली को केवल चतुर एंव छोटी कहानियों बताकर मण्डली को हँसाते और रुलाने के द्वारा प्रभावित करते हैं। वे दिलचस्प, मज़ेदार, मनोरंजक, रोमांचक उपदेश हो सकते हैं और वे सभी प्रकार की भावनाएँ और उत्तेजना उत्पन्न कर सकते हैं। लेकिन इस तरह के प्रचार से लोगों को वास्तव में परमेश्वर की आराधना करने में कोई मदद नहीं मिलती है। उपदेश का उद्देश्य केवल भावनात्मक अनुभव पैदा करना नहीं है, प्रचारक का प्राथमिक कर्तव्य अपने श्रोताओं की भावनाओं को हिलाना नहीं है, बल्कि “वचन का प्रचार करना” है, समय और असमय तैयार रहते हुए, सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना देना और डाँटना और समझा है। (2 तीमुथियुस 4:2)। प्रत्येक प्रचारक का आह्वान यह है कि वे परमेश्वर के विषय में शिक्षा प्रदान करे, और ज्ञान की यही नींव से आराधना निकलती है। इसे इस तरह से सोचें: यदि आप विश्वासयोग्यता से परमेश्वर के वचन को ग्रहण नहीं कर रहे हैं, तो आपके पास उसकी स्तुति करने का कोई आधार नहीं है— आपका कुआं सूखा है। हालाँकि, यदि आप नियमित रूप से वचन के स्वस्थ मांस से पोषित होते हुए आनंद ले रहे हैं, तो आप परमेश्वर की स्तुति से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकते।”

अब, इस विषय को दोहराना चाहूँगा, विशेषकर, यदि क्रिसमस किसी विषय का समय है, तो यह परमेश्वर का स्तुति, प्रशंसा, आराधना, और महिमा करने का समय है, और यदि मसीह की सच्चा बाइबल आधारित आराधना करने के लिए समय नहीं है, तो क्रिसमस का पूरी तरह से दुरुपयोग किया जा रहा है, और गलत तरीके से इसे समझा गया है, और गलत तरीके से इसे प्रस्तुत किया गया है, और गलत तरीके से इसे लागू किया गया है। 

यह परमेश्वर को आराधना करने का समय है, और आराधना हृदय का एक ऐसा दृष्टिकोण और मनोभाव है, जो परमेश्वर के व्यक्ति और कार्य के सत्य को सटीक रीति से विश्वासपूर्वक समझते हुए ,उनके प्रति आश्चर्य और कृतज्ञता से इतना भरा होता है कि इससे परमेश्वर के लिए स्तुति, प्रशंसा और आराधना और महिमा उमड़ आते है।

यदि एक वर्ष में कभी कोई ऐसा समय आता है जब आपको परमेश्वर के पुत्र को हमारे लिए भेजने में परमेश्वर की महान दया और करुणा के प्रति प्रशंसा, स्तुति और आराधना और आश्चर्य से भर जाना चाहिए, तो वह समय अभी है। और यदि आपने इसे आजतक अपने प्रतिबिंबित अनुभव और मनोभाव के रूप में नहीं पाया है, तो आपने अभी तक क्रिसमस का सच्चा बाइबल आधारित दृष्टिकोण, मनोभाव और भावना को नहीं जाना है, क्योंकि वह यही है।

मसीह का बाइबल आधारित वास्तविकता, विशेषकर उनके पृथ्वी पर आने और उनके व्यक्ति और कार्य का सत्य के प्रति हमारी आँखों को परमेश्वर खोलें, और परमेश्वर के दया मे होकर  मसीह के पृथ्वी पर आने के बाइबल आधारित सत्य को समझने मे हमे समझ देते जाए, ताकि जैसे ही हम उन सत्य को अधिक से अधिक समझने और उनसे प्रभावित एंव परिवर्तित होते रहे, मसीह के लिए स्तुति और आराधना और कृतज्ञता और प्रेम और प्रशंसा हमारे हृदयों और जीवनों से उत्पन्न और प्रतिफलित होते जाए।

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