मत्ती 5:5 ”धन्य हैं वे, जो नम्र हैं”

मत्ती 5:5 “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।‘’

अब तक मे हमने यह देखे थे कि सभी धन्य गुणें, प्रत्येक सच्चे विश्वासीयों मे देखा जाना चाहिए, और देखा जाता है, हालांकि, हो सकता है किसी किसी मे थोड़ा कम मात्रा मे, और किसी किसी मे थोड़ा अधिक मात्रा मे। और ये ऐसे गुण हैं जो स्वाभाविक रूप से हमारे शारीरिक जन्म से ही हममे नहीं आते हैं, यह परमेश्वर के विशेष अनुग्रह और कृपा का कार्य और फल है।

और हमने मत्ती 5:3 से वह पहले धन्य वचन को देखे थे, कि वास्तव में धन्य होने का क्या मतलब है, और “मन के दीन” होने का क्या अर्थ है? मन के दीन वे है जो अपने आत्मिक दरिद्रता को पहचानता है और जीवन के लिए पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भरशील है। https://biblestudyinhindi.com/matthew-5-1-3/

उसके बाद हमने मत्ती 5:4 से दूसरे धन्य वचन को भी देखे थे, कि शोक करने का अर्थ क्या है, यह अकेलेपन का या जब हमारे परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने पर होता शोक नहीं है, या  किसी व्यक्ति के अपने वासनापूर्ण इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाने के कारण आता शोक यह नही है, बल्कि यह एक ऐसा शोक है जिसे ईश्वर-भक्ति का शोक कहा जाता है, जहाँ एक व्यक्ति अपने स्वंय के पापों पर शोक करता है, और वह उन कारणों के लिए भी शोक करता है जिनके लिए यीशु शोकित हुए थे, जब यीशु ने संसार मे दुष्टता, पापपूर्णता और कठोर हृदयता को देखे थे। https://biblestudyinhindi.com/matthew-5-4-blessed-are-those-who-mourn/

आइए आज हम यीशु मसीह के पहाड़ी उपदेश के तीरे धन्य वचन को देखते है।

मत्ती 5:5 “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।‘’

यीशु इस उपदेश मे जो सिखा रहे है वह यहूदियों की अपेक्षा और सोच के बिल्कुल विपरीत थे। बेबीलोन की कैद के बाद से ही यहूदियों का इतिहास ज्यादातर गुलामी और दासत्व का रहा है, और यीशु के समय में वे रोमियों (रोम के साम्राज्य) के अधीन थे, वे रोम के कैद मे थे, फलस्वरूप वे मसीहा के आने और उन्हें रोमन उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने की लालसा कर रहे थे। वे पुराने नियम में प्रतिज्ञा किए गए राज्य की आशा कर रहे थे, लेकिन मसीहा के राज्य में प्रवेश करने के लिए जिस मूल्यांकन और अनिवार्य आवश्यकताओं (हृदय परिवर्तन:- मन फिराव और सच्चा विश्वास) की जरूरत है उसपर वे पूरी तरह से गलत थे।

अधिकांश यहूदियों को यीशु की शिक्षा नई और अस्वीकार्य लगी क्योंकि यीशु मसीह के समय तक मे पुराने नियम के पवित्रशास्त्र की बहुत गलत व्याख्या किया जा चुका था। उन्होंने नम्र, और स्वंय का त्याग करने वाले यीशु को मसीहा के रूप में नहीं पहचाना क्योंकि उन्हें यह एहसास ही नहीं था कि परमेश्वर ने मसीहा के रूप में पीड़ा उपभोग करने वाले सेवक की भविष्यवाणी की थी। यह सत्य उनके लिए बहुत असामान्य और पराया विषय था।

लेकिन यीशु कहता है “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” मत्ती 5:5

यीशु का क्या अर्थ है जब वह कहते है, ‘’धन्य हैं वे, जो नम्र हैं’’? आइए इसे समझने का प्रयास करे

  1. सबसे पहले, हम देखेंगे की ”नम्रता” क्या नही है? 
  2. दूसरा, ”नम्रता” क्या है? नम्र होने का अर्थ क्या है? 
  3. तीसरा, नम्र व्यक्तियों के लिये प्रतिज्ञा।
  4. चौथा, धन्य गुणों को प्रदर्शित करनेवालों की विशिष्टता।

1. ”नम्रता” क्या नही है?

  • नम्रता “आलस्य” नहीं है:- यह ऐसा गुण नहीं है जो हममे स्वाभाविक रूप से आता है। ऐसे लोग हैं जो स्वाभाविक रूप से नम्र प्रतीत हो सकते हैं, या नम्र जैसे दिखते है, लेकिन वे बाइबल के आधार पर बिल्कुल भी नम्र नहीं हैं, ऐसे लोग हैं जिससे बहुत आसानी से घुल मिला जा सकते हैं, और आप कहेंगे कि वे कितने नम्र हैं।
  • ऐसे लोग हैं जो स्वाभाविक रूप से अच्छे, प्यारे और सरल प्रतीत हो सकते हैं, लेकिन यीशु के नम्रता का वर्णन वह नही है।
  • किसी भी कीमत पर समझौता (समझौता) करना, ”नम्रता” नहीं है:- ऐसे लोग हैं जो सत्य की कीमत पर समझौता करना चाहते हैं, यानी सत्य को त्यागते हुए किसी के साथ भी समझौता करना चाहते है, वे कहेंगे हम असहमति नहीं चाहते, चाहे कुछ भी हो लेकिन “असहमति” नहीं, और आइए एक-दूसरे के प्रति अच्छे रहें।
  • यदि यह तमाम विषय नम्रता नहीं है, तो फिर नम्रता है क्या??

हम यह देखने जा रहे हैं कि ‘’नम्रता’’ सामंजस्यपूर्ण या एकतापूर्ण है और बड़ी सामर्थ्य और साहस के साथ आती है, जिनमे नम्रता है वे ऐसे व्यक्तिया है जो पवित्रशास्त्र की सत्य के लिए खड़े होते हैं और उसका बचाव करते हैं, और परमेश्वर के महिमा के लिए अटूट चाहत रखते हैं।

2. ”नम्रता” क्या है? नम्र होने का अर्थ क्या है? 

  • मत्ती 5:5 में उपयोग किया गया “नम्र” शब्द का अर्थ  ‘’नरम या मुलायम’’ है, जिसका इस्तेमाल सुखदायक दवा या नरम हवा का वर्णन करने के लिए किया जाता है। मानवीय दृष्टिकोण के रूप में इसका अर्थ है ”आत्मा में कोमल होना, नम्र, शांत, कोमल हृदय का होना,” नम्र वह व्यक्ति भी है जिसमें परमेश्वर की महिमा और परमेश्वर की सत्य के लिए अटूट चाहत है।

आइए, नम्रता के विषय मे अधिक समझने के लिए बाइबल के अन्य पदों का सहायता ले और सर्वेक्षण करे।

  • भजन 37:9,11,29 ‘’क्योंकि कुकर्मी लोग काट डाले जाएँगे;  और जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। 11परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे,….29 धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।‘’
  1. भजन 37 के अनुसार नम्र व्यक्ति यहोवा की बाट जोहते है, और
  2. नम्र व्यक्ति यहोवा के द्वारा धर्मी ठहराया जाकर धार्मिकता का अभ्यास मे जीवन जीता है।
  • इफिसियों 4:1-2 ‘’1इसलिये मैं जो प्रभु में बन्दी हूँ तुम से विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो, 2अर्थात् सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो’’
  • नम्रता का मतलब कमजोरी नहीं है, नम्रता कायरता नहीं है, बल्कि यह साहस और सामर्थ्य है।
‘’नम्रता’’ का सर्वश्रेष्ठ आदर्श और उदाहरण यीशु मसीह है।
  • यदि आप जानना चाहते है कि नम्रता क्या है तो यीशु मसीह की ओर ताके, उनके पास आए और उनसे सीखे।
  • मत्ती 11:28-29 ‘’“हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। 29मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखोक्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ :’’

a. यीशु विनम्र, धैर्यवान और सहनशील है, खासकर जब वह अन्याय सहते थे, उन्होंने दूसरों के लिए खुद को बलिदान कर दिया।

1 पतरस 2:21-23 ‘’और तुम इसी के लिये बुलाए भी गए हो, क्योंकि मसीह भी तुम्हारे लिये दु:ख उठाकर तुम्हें एक आदर्श दे गया है कि तुम भी उसके पद–चिह्नों पर चलो। 22न तो उसने पाप किया और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली। 23वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दु:ख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्‍चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।‘’

b. यीशु विनम्र, धैर्यवान और सहनशील है, खासकर जब वह अन्याय सहते थे, और उन्होंने दूसरों के लिए खुद को बलिदान कर दिया, लेकिन साथ ही साथ उन्होंने पिता की महिमा का भी रक्षा की। वही यीशु जब उसके पिता के घर को अपवित्र किया जा रहा था, उसने मंदिर को दो बार साफ़ किया, अर्थात वहा से व्यापारियों को निकाल दिया।
मत्ती 21:12-13 ‘’12यीशु ने परमेश्‍वर के मन्दिर में जाकर उन सब को, जो मन्दिर में लेन–देन कर रहे थे, निकाल दिया, और सर्राफों के पीढ़े और कबूतर बेचनेवालों की चौकियाँ उलट दीं; 13और उनसे कहा, “लिखा है, ‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलाएगा’; परन्तु तुम उसे डाकुओं की खोह बनाते हो।‘’

c. ‘’नम्रता’’, शक्ति को नियंत्रण में रखना और परमेश्वर के नियंत्रण में समर्पित करना है, यह परमेश्वर की इच्छा के प्रति आत्मसमर्पण का जीवन है। 

फिलिप्पियों 2:6-8 ‘’6जिसने परमेश्‍वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्‍वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा 7वरन् अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया 8और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।‘’

d. ‘’नम्रता’’ का अर्थ यह भी है कि हम परमेश्वर के वचन की सत्य को सुनने और सीखने और उसके अधीन मे रहकर उसका पालन करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं, नम्र व्यक्ति एक ऐसा व्यक्ति है जिसे सिखाया जा सकता है। जो परमेश्वर के सत्य को सिखने के लिए इच्छुक और तत्पर है।

इब्रानियों 5:8 ‘’पुत्र होने पर भी उसने दु:ख उठा–उठाकर आज्ञा माननी सीखी,’’

यद्यपि यीशु स्वयं परमेश्वर है, फिर भी उनके देह-धारण से इस पृथ्वी पर जीवनकाल के दौरान उन्होंने स्वयं को दीन एंव नम्र किये और एक मनुष्य बन गए, और अब वह पूरी तरह से पिता परमेश्वर के अधीन हो गए और सम्पूर्ण रूप से इस बात पर निर्भर थे कि पिता ने उन्हें क्या दिया है, और क्या सिखाया है, और पिता ने उन्हें क्या करने को कहा है। यीशु ने स्वंय को इस प्रकार नम्र किये है, और यही नम्रता है, कि हम खुद को परमेश्वर के अधीन मे समर्पित कर रहे हैं और परमेश्वर के वचन के सत्य को जैसा वह है, वैसे ही सीखने और पालन करने के लिए तैयार एंव इच्छुक हैं।

यही है बाइबल के अनुसार नम्रता, जिसका स्पष्ट चित्रण को हम यीशु मसीह मे देख पाते है, क्या हम इन विशेषताओं को हमारे अपने अपने जीवनों मे देख पा रहे है? क्या यह बाइबल आधारित ”नम्रता” हमारे जीवनो मे आज वास्तविक है? यदि हम विश्वासी है लेकिन कुछ समय से बाइबल अनुसार नम्र होने से चूक रहे है, तो हमे आज परमेश्वर से क्षमा मांगने की आवश्यकता है, और नम्र मसीह के पास आकर नम्रता के विषय मे सिखना और नम्र बनते जाना है, यह हमारे लिए कोई विकल्प नही है। परमेश्वर हमपर अनुग्रह करे और हमे मसीह के स्वरूप मे रुपांतर होने मे सहायता करे।

यह है बाइबल के अनुसार नम्रता, और नम्र व्यक्ति के पहचान। अब नम्र व्यक्तियों के लिए प्रतिज्ञा को देखते है।

3. नम्र व्यक्तियों के लिये प्रतिज्ञा।

  •  ”धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।” मत्ती 5:5
  • एक अर्थ मे नम्र व्यक्तिया परमेश्वर के पृथ्वी की अधिकारी ठहर चुके है,जो आज भी वास्तविक है, जैसा कि पौलुस 2 कुरिन्थियों 6:10 में कहते हैं “ऐसे हैं जैसे हमारे पास कुछ नहीं तौभी सब कुछ रखते हैं।” लेकिन इसकी  पूर्णता भविष्य मे होगा, यीशु के दूसरे आगमन के समय से।
  • लूका 19:17  ‘’ उसने उससे कहा, ‘धन्य, हे उत्तम दास! तू बहुत ही थोड़े में विश्‍वासयोग्य निकला अब दस नगरों पर अधिकार रख।’’, लूका 19:17 के अनुसार जब मसीह लौटकर पृथ्वी पे अपना राज्य स्थापित करेंगे तब धन्य दासों को इस पृथ्वी पर नगरों के अधिकारी बनाया जायेंगा, वे वाकई मे वास्तविक अर्थ मे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। 1 कुरिन्थियों 6:2 भी समान तरीके के बात को करते है। 1 कुरिन्थियों 6:2 ‘’ क्या तुम नहीं जानते कि पवित्र लोग जगत का न्याय करेंगे?’’….
  • 2 तीमुथियुस 2:12 ‘’यदि हम धीरज से सहते रहेंगे, तो उसके साथ राज्य भी करेंगे;’’….यदपि आज अधिकांश अपरिवर्तित लोग जगत पर राज कर रहे है, लेकिन 2 तीमुथियुस 2:12 के अनुसार, ऐसे समय आयेंगे जब परमेश्वर द्वारा ठहराए गए पवित्र लोग, जगत पर राज्य करेंगे।
  • एक दिन आयेंगे जब परमेश्वर पूरी तरह से मसीह के द्वारा सम्पूर्ण पृथ्वी को पुनः प्राप्त कर लेंगे, और मसीह यरूशलेम से पूरे पृथ्वी पर राज्य करेंगे, और जो लोग यीशु में सच्चा विश्वास के माध्यम से उनके सन्तान ठहरे हैं, वे परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी एंव वारिस बन चुके है, और जब वह राज्य सम्पूर्ण रीति से स्थापित होंगे तब वे वहा प्रवेश करेंगे और वहा के अधिकारी होंगे। और वही वे लोग हैं जो नम्र हैं, वे नम्र हैं क्योंकि वे अपनी ‘’मन के दीनता’’ और आध्यात्मिक कंगालियत को समझे और देखे हैं, और अपनी इस दुर्दशा पर शोक करते है, और स्वयं को परमेश्वर की दया पर सम्पूर्ण रूप से निर्भर और आत्मसमर्पित कर दिये है।

4. धन्य गुणों को प्रदर्शित करनेवालों की विशिष्टता।

  • मत्ती 5:5 “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।”
  • यूनानी बाइबल में यहा के ”वे” शब्द बहुत सशक्त और विशिष्ट है, यह इंगित करता है कि जब मसीह अंततः अपना राज्य स्थापित करेगा तो “वे”, और केवल “वे” ही, जिनका वर्णन या उल्लेख यहा किया गया है, पृथ्वी के अधिकारी होंगे।
  • क्या आप ऐसे व्यक्ति हैं जिसने अपने आत्मिक दरिद्रता को, अपने पापों को समझा और पहचाना है और अपने पापों पर ईश्वर-भक्ति के शोक से शोकित हुए है और हो रहे है,  फलस्वरूप आप नम्र और दीन बन गए हैं, क्योंकि परमेश्वर के आत्मा ने आप में काम किया है। क्योंकि ये एक प्राकृतिक मनुष्य (जिसका नया जन्म नही हुआ है) के लिए असंभव हैं। हम कभी भी अपने आप को पवित्र आत्मा के पूर्व कार्य के बगैर नम्र नहीं बना सकते।
  • यदि आप ईसाई होने का दावा करते हैं, तो आपके पास नम्र न होने का कोई बहाना नहीं हो सकता, जो व्यक्ति मसीह से बाहर है उसके पास नम्र न होने का बहाना है, क्योंकि (नया जन्म के बगैर) उसके लिए नम्र होना असंभव है।
  • धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे और केवल वे ही पृय्वी के अधिकारी होंगे।
  • लेकिन, इस तरह से कभी धन्य न होने का मतलब बिल्कुल विपरीत है, अतः शापित हैं वे जो कभी नम्र नहीं हैं, और वे पृथ्वी के अधिकारी नहीं होंगे, बल्कि वे मसीह के राज्य से बाहर कर दिए जाएंगे।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top