मत्ती 5:6 ”धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं”

मत्ती 5:6 ”धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्‍त किए जाएँगे।”

 

अभी तक में हमने तीन धन्य वचनों को देख चुके थे,

  • मत्ती 5:3 ”धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।” https://biblestudyinhindi.com/matthew-5-1-3/
  • मत्ती 5:4 ”धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएँगे।” https://biblestudyinhindi.com/matthew-5-4-blessed-are-those-who-mourn/
  • मत्ती 5:5 ”धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे।”  https://biblestudyinhindi.com/matthew-5-5-blessed-are-the-meek/   नम्र व्यक्ति वह है, जो सुशील है, जो नरम है, जो सहनीय है, जिसमे परमेश्वर के महिमा के लिए अटूट चाहत और जुनून है, और जो परमेश्वर के सत्य का बचाव करता है, जिसमे साहस है (2 कुरिन्थियों 10:1), और जो परमेश्वर के इच्छा मे समर्पित रहता है।
  • हमें हमेशा यह स्मरण रखने कि आवश्यकता है कि ये विशेषताएँ स्वर्ग का राज्य के लोगों की विशेषताएं हैं, और इसे हर सच्चा विश्वासीयों में देखा जाना चाहिए, और देखा जाता है।
  • अगला धन्य वचन जिस पर हम गौर करने जा रहे हैं वह मत्ती 5:6 में पाया जाता है।

मत्ती 5:6 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्‍त किए जाएँगे।‘’

यीशु यहां जो कह रहा हैं वह फिर से उसके ठीक विपरीत है जिसकी इच्छा और चाहत संसार रखता है, संसार आंखों की अभिलाषा, शरीर की अभिलाषा और जीविका का  घमण्ड का अभिलाषा रखता है, यही वह है जिसकी पतित और अपरिवर्तित मनुष्य हमेशा अभिलाषा रखता है। वे इस संसार के चीज़ों में ख़ुशी की तलाश कर रहे हैं, और आख़िरकार उन्हें सच्चा  आनन्द और संतुष्टि वहाँ कभी नहीं मिलेगी। क्योंकि यीशु के अनुसार वास्तव में आनन्दित और धन्य व्यक्ति वे हैं जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं।

यहा मे से हम चार मुख्य विषयों की ओर अपना केन्द्र को डालेंगे।

A. सबसे पहले, यीशु के कहने के अनुसार भूखे और प्यासे होने का क्या अर्थ है?

B. दूसरा, यहा किस धार्मिकता का भूखे और प्यासे होने का बात को कहा गया है? यह धार्मिकता क्या है?

C. तीसरा, धार्मिकता के भूखे और प्यासे व्यक्तियों के लिये प्रतिज्ञा।

D. चौथा, उन मनुष्यों का क्या जो कभी भी इस धार्मिकता के लिये भूखे और प्यासे नही है?

 

A. सबसे पहले, यीशु के कहने के अनुसार भूखे और प्यासे होने का क्या अर्थ है?

यीशु यहा आत्मिक भूख और प्यास की बात कर रहा है। यीशु यहाँ जिस भूख और प्यास की बात कर रहे हैं वह बहुत गहरी और तीव्र भूख और प्यास है। जहां एक इन्सान अपने सबसे गहरे जरूरत के प्रति सचेत और सक्रिय है। हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत के प्रति चेतना का होना, यहाँ तक कि दर्द की हद तक भी। इसका मतलब एक प्रकार की भावुकता (सेंटिमेंटलिजम) नहीं है, जो अभी है और कल चली जायेगी, यह कोई गुजरती हुई इच्छा या भावना नहीं है।

इसे समझने के लिये एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना करें जिसने कही दिनों से भोजन नहीं किये है, फलस्वरूप अब वह शारीरिक रूप से भूखा और प्यासा है और भोजन और पानी के लिए तरस रहा है, इसी चित्रण के मदद से आत्मिक भूख और प्यास को समझने का प्रयास करे, जो व्यक्ति आत्मिक रूप से भूखे और प्यासे है, वे वह  है, जो इस भूख के मारे आत्मिक आहार और पानी के लिये तड़प और तरस रहा है। अर्थात हमारी सबसे बड़ी ज़रूरत की चेतना का होना, यहाँ तक कि दर्द की हद तक भी।

इस संबंध मे जॉन डार्बी लिखते है, ”भूखा रहना ही काफी नहीं है; मुझे वास्तव में यह जानने के लिए भूख से तड़पना है कि परमेश्वर के हृदय में मेरे प्रति क्या है। जब उड़ाऊ पुत्र को भूख लगी तो वह भूसा खाने गया, परन्तु जब वह भूख से तड़प रहा था, तो वह अपने पिता की ओर मुड़ गया।”

यीशु इसी प्रकार की भूख के बारे में बात कर रहे हैं, जो कि है धार्मिकता के लिए भूख। हमें जिस विषय के लिये भूखे होना है वह है ”धार्मिकता”। यीशु यह नहीं कहते कि धन्य हैं वे जो आनन्द के भूखे हैं, “आनन्द” वह नहीं है जिसके लिए हमें पहले भूखा होना चाहिए, हमें धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा होना चाहिए और ‘’आनन्द’’ वह है जो परमेश्वर उन लोगो को देता है जो धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे हैं।

B. “धार्मिकता” का क्या अर्थ है?

इस विषय मे हमें अधिक सतर्क होने की आवश्यकता है क्योंकि ऐसे प्रकार के धार्मिकताएं हैं जो किसी व्यक्ति को अनन्त लाभ नहीं, बल्कि अनन्त नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे मनुष्य द्वारा निर्मित आत्म-धार्मिकता। यीशु मसीह कहते है, “क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे।” मत्ती 5:20

लेकिन यीशु मत्ती 5:6 में जिस धार्मिकता की बात कर रहे हैं वह परमेश्वर की धार्मिकता है (मत्ती 6:33)। इसे हम दो तरह से समझ सकते हैं;

(a) पापियों को धर्मी ठहराने के लिए:

पौलुस रोमियों 3:22 में कहते है, “अर्थात् परमेश्‍वर की वह धार्मिकता जो यीशु मसीह पर विश्‍वास करने से सब विश्‍वास करनेवालों के लिये है।”

अतः परमेश्वर के धार्मिकता के लिये भूख प्रारंभिक स्तर में बचाए जाने के लिए, उद्धार के लिये (धर्मी ठहराए जाने के लिये) परमेश्वर के धार्मिकता के लिये भूख और प्यास है। क्योंकि इस व्यक्ति ने अपने जीवन की आत्मिक अक्षमता और दरिद्रता को देखा और महसूस किया है, और वह अपने पापों पर ईश्वर-भक्ति के शोक से शोकित हो रहे है और अब क्षमा और उद्धार के लिए परमेश्वर के धार्मिकता का लालसा कर रहा है।

आवश्यक चेतावनी:- रोमियों 10:1-3 मे पौलुस कहता है “हे भाइयो, मेरे मन की अभिलाषा और उनके लिये परमेश्‍वर से मेरी प्रार्थना है कि वे उद्धार पाएँ। क्योंकि मैं उनकी गवाही देता हूँ कि उनको परमेश्‍वर के लिये धुन रहती है, परन्तु बुद्धिमानी के साथ नहीं। क्योंकि वे परमेश्‍वर की धार्मिकता से अनजान होकर, और अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करके, परमेश्‍वर की धार्मिकता के अधीन न हुए।”

पौलुस रोमियों 10:1-3 मे किसलिए प्रार्थना कर रहा है? उसके शारीरिक भाइयों का उद्धार के लिए। क्योंकि वे उद्धार प्राप्त नही थे,हालांकि उनमें सच्चा परमेश्वर के प्रति एक प्रकार का उत्साह और जोश और धुन रहती थी, फिर भी वे अपरिवर्तित थे, वे उद्धार प्राप्त नही थे, लेकिन क्यों? क्या छूट रहा है? रोमियों 10:2-3 हमें बताता है कि वे अज्ञानी थे, क्योंकि वे परमेश्‍वर के धार्मिकता से अनजान होकर, और अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करके, परमेश्‍वर की धार्मिकता के अधीन न हुए। वे परमेश्वर के धार्मिकता से अनजान थे, और वे परमेश्‍वर के धार्मिकता का कभी भूखे और प्यासे थे नही ; इसलिए, वे उद्धार से वंचित थे, इसीलिए पौलुस यहां उनके उद्धार के लिए प्रार्थना करता है।

इसका हमारे लिए आज क्या निहितार्थ है? देखिए किसी मनुष्य में सच्चा परमेश्वर के प्रति एक प्रकार का उत्साह और जोश और धुन हो सकता है (लेकिन केवल एक प्रकार का जोश और धुन का होना उद्धार का निश्चित प्रमाण नही है)। क्योंकि एक प्रकार  का जोश होते हुए भी यदि कोई व्यक्ति कभी भी परमेश्वर के धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे नहीं रहे हैं, तो इससे यही ठहरता है कि उसने भी अभी तक परमेश्‍वर के धार्मिकता को नहीं जाना है और उससे वह अनजान है, और इस संदर्भ मे परमेश्वर के धार्मिकता को न जानने या उससे अनजान रहने का मतलब है कि वह अभी भी अपरिवर्तित दशा मे है, और उद्धार प्राप्त नहीं हैं, और उसको उद्धार की आवश्यकता है।

यदि हममे से किसी का स्थिति ऐसा है, तो, परमेश्वर अनुग्रह करे और आपके आँखों को खोलकर इस झूठे आश्वासन और आशा की वास्तविकता को दिखाए, जिसमें आप बने हैं, और परमेश्वर वास्तव में आपको उनके अपने धार्मिकता देकर उद्धार प्रदान करे। जब कोई व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर के धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा होता है, तो वह वास्तव में उद्धार (धर्मी ठहराए जाने) की खोज करता है, जो कि मसीह से आने वाली धार्मिकता के माध्यम से होता है, जब कोई व्यक्ति अपने पापों से मन फेरकर यीशु पर सच्चा विश्वास करता है।

(b) पवित्रीकरण के लिए:

यह “धार्मिकता” धर्मी ठहराए जाने के लिए है, लेकिन इसमें केवल यही  नहीं बल्कि पवित्रीकरण (पवित्रता मे प्रगती करना) भी शामिल है।परमेश्वर के धार्मिकता के लिए भूख और प्यास का अर्थ है पाप से क्षमा पाने की इच्छा रखना, और पाप के दण्ड से मुक्त होने की इच्छा रखना, और साथ ही साथ पाप की शक्ति और उपस्थिति से भी मुक्त होने की लालसा करना। यह परमेश्वर के धार्मिकता के बुनियाद पर पापों से क्षमा किये जाने और परमेश्वर के दृष्टि मे धर्मी ठहराए जाने की इच्छा और चाहत है, लेकिन यह इससे भी आगे जाता है… “इसका अर्थ है पाप करने की इच्छा से भी मुक्त होने की इच्छा, चाहत और लालसा रखना”।

एक व्यक्ति जो शुरूआत में धार्मिकता का भूखा और प्यासा होता है, वह परमेश्वर के साथ मेलमिलाप और परमेश्वर के दृष्टि मे सटीक ठहरने, एंव क्षमा किए जाने का भूखा होता है, और एक बार जब वह धर्मी ठहराया जाता है, तो वह पाप का दण्ड से मुक्त हो जाता है। लेकिन उसे जल्द ही पता चलता है कि वह अभी भी उसके जीवन मे निवास करने वाली पाप की शक्ति के प्रभाव में है, और इससे भी बदतर यह है कि उसके जीवन मे ऐसे भी क्षणें आते है जब वह इस पाप को पसंद भी करता है और इसे चाहता है। लेकिन अब यह आदमी जो धार्मिकता का भूखा और प्यासा है, वह पाप करने की ऐसे इच्छा और चाहत से भी छुटकारा पाना चाहता है।

एक विश्वासी के जीवन में धार्मिकता की भूख और प्यास, पवित्रता में बढ़ने, पवित्र होने की भूख और प्यास है। यह, पिता , पुत्र और पवित्र आत्मा के साथ संगति में बढ़ने की इच्छा है। यीशु के स्वरूप मे रुपांतरित होने की यह इच्छा है। और इस प्रकार से पवित्रीकरण में, पवित्रता में बढ़ना सच्चे विश्वासियों का वास्तविक चिह्न है।

C. धार्मिकता के भूखे और प्यासे व्यक्तियों के लिये प्रतिज्ञा।

  • मत्ती 5:6 “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्‍त किए जाएँगे।”

प्रत्येक मनुष्य जो धार्मिकता के लिये भूखे और प्यासे है, वे तृप्त किए जाएँगे।

  • तुरंत तृप्त किए जाते है:- जो व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर के धार्मिकता के लिए भूखा और प्यासा है, वह एक अर्थ मे उसी वक्त तृप्त किए जाते है जब वह यीशु में विश्वास करते है, क्योंकि उसे तुरंत क्षमा किया जाता है, और पाप का दण्ड से मुक्त कर दिया जाता है और परमेश्वर के सामने धर्मी ठहराया जाता है।
  • संतुष्टि एक प्रक्रिया है:- परमेश्वर के दया में, उद्धार प्राप्त व्यक्ति जो धार्मिकता का भूखा और प्यासा है, जो पाप करने की इच्छा से मुक्त होने, पवित्रता में बढ़ने, यीशु की तरह बनने की इच्छा रखता है। अतः परमेश्वर अपने दया मे, अपने इच्छा के अनुसार, पवित्र आत्मा के कार्य द्वारा सच्चा तृप्ति का फल को सच्चा विश्वासीयों मे प्रदान करता है, और यह एक प्रक्रिया है। एक अर्थ मे, क्षमा किया गया पापी धीरे-धीरे तृप्त और संतुष्ट हो रहा है… और सच्चा रीति से तृप्त होते जाता है।
  • संतुष्टि का पूर्णता:- मसीह के दूसरे आगमन से (विशेषकर अनंत काल मे), जो इस जीवन मे परमेश्वर के धार्मिकता के लिए भूखे और प्यासे है वे आखिरकार अनन्त काल मे अनन्त काल के लिए तृप्त किए जाएँगे, हम स्वंय पाप की उपस्थिति से पूरी तरह से मुक्त हो जायेंगे। हम महिमामय शरीर दिए जायेंगे, हमे सिद्ध बनाया जाएगा, ताकी हम सिद्धता मे मसीह के सुन्दरता और महिमा को देखते हुए उन्हीं मे अनन्तकाल के लिए तृप्त हो सके। तब मृत्यु और पाप मे गिरने की कोई संभावना नहीं रहेगा। हम सर्वदा परमेश्वर के साथ होंगे, उसका सेवा  और आराधना हम करेंगे और मसीह के साथ राज्य करेंगे, जैसे की प्रकाशित वाक्य मे उल्लेख है।
  • प्रकाशितवाक्य 21:22-27 “मैं ने उसमें कोई मन्दिर न देखा, क्योंकि सर्वशक्‍तिमान प्रभु परमेश्‍वर और मेम्ना उसका मन्दिर है। उस नगर में सूर्य और चाँद के उजियाले की आवश्यकता नहीं, क्योंकि परमेश्‍वर के तेज से उस में उजियाला हो रहा है, और मेम्ना उसका दीपक है। जाति–जाति के लोग उसकी ज्योति में चले–फिरेंगे, और पृथ्वी के राजा अपने अपने तेज का सामान उसमें लाएँगे। उसके फाटक दिन को कभी बन्द न होंगे, और रात वहाँ न होगी। लोग जाति जाति के तेज और वैभव का सामान उसमें लाएँगे। परन्तु उसमें कोई अपवित्र वस्तु, या घृणित काम करनेवाला, या झूठ का गढ़नेवाला किसी रीति से प्रवेश न करेगा, पर केवल वे लोग जिनके नाम मेम्ने के जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।
  • प्रकाशितवाक्य 22:3-6फिर स्राप न होगा, और परमेश्‍वर और मेम्ने का सिंहासन उस नगर में होगा और उसके दास उसकी सेवा करेंगे। वे उसका मुँह देखेंगे, और उसका नाम उनके माथों पर लिखा हुआ होगा। फिर रात न होगी, और उन्हें दीपक और सूर्य के उजियाले की अवश्यकता न होगी, क्योंकि प्रभु परमेश्‍वर उन्हें उजियाला देगा, और वे युगानुयुग राज्य करेंगे। फिर उसने मुझ से कहा, “ये बातें विश्‍वास के योग्य और सत्य हैं। प्रभु ने, जो भविष्यद्वक्‍ताओं की आत्माओं का परमेश्‍वर है, अपने स्वर्गदूत को इसलिये भेजा कि अपने दासों को वे बातें, जिनका शीघ्र पूरा होना अवश्य है, दिखाए।”
  • मैं नहीं जानता कि आप इसके विषय मे क्या महसूस करते हैं, लेकिन मैं अवाक हूं।

D. उन मनुष्यों का क्या होगा जो परमेश्वर के धार्मिकता के लिए कभी भूखे और प्यासे नहीं है?

  • निर्दिष्ट रुप से पहाड़ी उपदेश के अन्त मे हम पाते है, जहा यीशु कहता है ”जो मुझ से, ‘हे प्रभु! हे प्रभु!’ कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।” मत्ती 7:21-23
  • विशेषकर ये लोग कोई नास्तिक या अन्य धर्मों के समूह नहीं हैं।
  • ये वे लोग हैं जिन्होंने अपने अधिकांश जीवन में परमेश्वर और यीशु को जानने का दावा किए है, और यीशु को अपने मुंह से प्रभु, प्रभु कहे है।
  • ये वे लोग हैं जो स्थानीय कलीसिया के कई गतिविधियों में कार्य किए थे, और इन लोगो के दावे के अनुसार वे एक प्रकार के भविष्यवाणि के कार्य में शामिल थे,  दुष्‍टात्माओं को निकालने के कार्य मे और यीशु के नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म करने मे जुड़े थे। कृप्या ध्यान दे, इन गतिविधियों में शामिल होना उद्धार का कोई निश्चित एंव बाइबल आधारित प्रमाण नहीं है।
  • इन सभी गतिविधियों में शामिल होने के बावजूद यीशु उनसे स्पष्ट रूप से कहते हैं, “मैं ने तुम को कभी नहीं जाना…. मेरे पास से चले जाओ।” क्यों? क्या कारण हैं? यीशु कहते है “मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो यीशु के अनुसार ये लोग “कुकर्म या अधर्म के काम करनेवाले” मनुष्य है। जिससे यह ठहरता है कि ये लोग कभी भी धार्मिकता के भूखे और प्यासे नहीं रहे, इसलिए ये धार्मिकता के नही, वरन कुकर्म अर्थात अधर्म के काम करनेवाले है, अतः तुम्हारी भूख और प्यास परमेश्वर के धार्मिकता के लिए नहीं वरन कुछ और ही चीजों के लिए रहे है।
  • ये लोग परमेश्वर के धार्मिकता के लिए कभी भूखे और प्यासे नहीं रहे है, इसलिए वे न इस जीवन मे, और न आने वाले समय में तृप्त किए जाएँगे।

आपका जीवन आज कैसा है? क्या आप आज परमेश्वर के धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं?

हम सावधान रहे! इससे उतना कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी व्यक्ति का अनुभव और पृष्ठभूमि क्या है, और वह क्या होने का दावा करता है, क्योंकि यदि वह कभी भी उद्धार के लिए परमेश्वर के धार्मिकता के भूखे और प्यासे नहीं रहे है, तो उसने वास्तव में प्रभु यीशु को कभी नहीं जाना है, (भले वह यीशु को अपने मुंह से “हे प्रभु, हे प्रभु” कह सकता है) और न ही प्रभु यीशु उसे जानता है, परिणामस्वरूप, वह तृप्त नहीं किये जायेंगे, और यीशु मसीह के अनुसार आखिरकार ऐसे बहुतों का अंतिम अंत वह है, जहां यीशु कहते हैं ”‘मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।”

जीवन छोटा है! अतः आइए हम ऐसे व्यक्तिया बनते जाए जो परमेश्वर के धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं , क्योंकि ”धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्‍त किए जाएँगे।”

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