”तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है”

लूका 2:11 “कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है।”

 

  • उद्धारकर्ता क्योकर जन्मे? मानव जाती को किस से और क्या से उद्धार की आवश्यकता है?

आज जब आप लोगो को सुसमाचार का प्रचार करते हुए सुनते हैं, तो अक्सर उनके सन्देश का निष्कर्ष यह ठहरता है कि हमे हमारे अधूरे सपनों से बचाया जाना चाहिए, कि जीवन में हमारे कुछ ऐसा सपना रह गया है जो अभी भी पूरा नहीं हुआ है, जिसके वजह से कुछ बड़े स्तर की निराशा हममे है, इसलिए हमें इससे बचना होगा। और इसलिए, यहा से यह विचार आता है कि यीशु आएंगे और आपको आपके अधूरे सपनों के जीवन से उद्धार दिलाएंगे, वह आपको इस तरह के अधूरे जीवन, इस तरह की उद्देश्यहीनता, इस तरह की हताशा या यहाँ तक कि निराशा से मुक्ति दिलाएगा।

दूसरे, ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि यीशु आपको आपके बुरे और दुर्बल करने वाली आदतों से बचाने आया है। ऐसी चीज़ें जिन पर आप नियंत्रण नहीं पा सकते। यीशु आपको अपने जीवन पर नियंत्रण पाने में सक्षम बनाने जा रहे हैं, क्योंकि आप नियंत्रण से बाहर हैं, चाहे वह शराब के मामले में हो या चाहे वह नशीली ड्रग्स के मामले में हो या चाहे वह किसी अन्य प्रकार की आदत के कारण हो, कुछ लोगों के लिए यह कुछ ऐसा हो सकता है जैसे धूम्रपान जो कैंसर का कारण बनता है, और आप फिर भी इसे नहीं छोड़ पा रहे है।

हो सकता है कि आप इन्टरनेट में अश्लील चित्रण या वीडियो देखने के लत मे पड़े है, आप उस इंटरनेट पर आते हैं और देर-सबेर आप उस पर चले जाते हैं क्योंकि आप इसका विरोध नहीं कर पा रहे हैं और आप वास्तव में इन कमजोर करने वाली चीजों से थक चुके हैं। आप इस पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे है। या आप अपने गुस्से और क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं और परिणामस्वरूप आप अपने पति या पत्नी के साथ अपने रिश्ते को बर्बाद कर रहे हैं, आप अपने बच्चों के साथ अपने रिश्ते को बर्बाद कर रहे हैं, और यीशु आएंगे और इसे ठीक करेंगे। यीशु आपको उन प्रेरणाओं और इच्छाओं से मुक्ति दिलाएंगे जो आपके जीवन और आपके आस-पास के जीवन को नष्ट कर देती हैं।

सुसमाचार को विश्वास करने के फल के रूप मे यह सच हो सकते है, कि हमारे बुरा आदत हमसे दूर हो रहे है, और हम मे से कोई नही चाहेगा कि किसी के जीवन मे वह किसी प्रकार के बुरे आदत के लत मे फसे रह जाए।

लेकिन उद्धार में ये सब प्राथमिक मुद्दे नहीं हैं। यीशु के इस पृथ्वी पर आने का एक और विषय है जो प्राथमिक और केन्द्रीय और एकल है।

इस जगत में हर किसी के सपने अधूरे नहीं होते, दुनिया में ऐसे भी लोग होते हैं जो संसारिक चीजो मे एक प्रकार से तृप्त है, जिनकी कोई अपेक्षा नहीं होती इसलिए उन्हें कोई अधूरापन महसूस नहीं होता। तो यह कोई सार्वभौमिक (सभी मनुष्यों का) समस्या नहीं है। यदि हमारे पास एक उद्धारकर्ता होता जो दुनिया को बचाने के लिए आया है, और वह दुनिया का उद्धारकर्ता है, तो वह केवल अधुरा सपनो से नहीं निपटेगा। क्योंकि अधुरा सपना मुख्य मुद्दा और समस्या नहीं हो सकता।

और दूसरी ओर, हर मनुष्य को अपने अनियंत्रित, या कमजोर या बुरे आदत से खतरे और आपदा की स्थिति तक नहीं ले जाया जाता है। हर कोई उन चीज़ों द्वारा समान रूप से हावी नहीं होता है। ऐसे लोग भी हैं जिनके पास एक मात्रा में आत्म-नियंत्रण होता है। (ऐसे लोग है जैसे कि बौध संन्यासीया, जो संसार के तमाम नशीले पदार्थ का सेवन नही करते,  और वे एक प्रकार से अनुशासित जीवन जीते है, क्या इसका मतलब यह है कि यीशु उनके जैसे लोगो के उद्धार के लिये नही आये? और क्या उनका उद्धार हो चुका है क्योंकि वे नशीले पदार्थ का सेवन मे लीन नही है।) इसलिए यह कमजोर और अनियंत्रण आदत भी मानव जाती का सार्वजनिक समस्याएँ नहीं हैं।

जिस सार्वजनिक (सम्पूर्ण मानव जाती के) समस्या से परमेश्वर ने हमें उद्धार दिलाने के लिए एक उद्धारकर्ता को भेजा है वह “पाप और अपराध” की समस्या है। यही मुख्य और केन्द्रीय मुद्दा और समस्या है। यीशु हमें हमारे पापों से, और पापों के अनन्त परिणामों से बचाने के लिए आये है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक मनुष्य इस श्रेणी में आता है (रोमियों 3:23)।

मार्टीन लॉयड जोन्स का सटीक कहना है ”कि उद्धार के बाइबलिय सिद्धांत को समझने के लिए पाप के बाइबलिय सिद्धांत को समझना बिल्कुल महत्वपूर्ण है। जब तक आप पाप के बारे में सही और स्पष्ट नहीं होंगे तब तक आप उद्धार के बारे में सही और स्पष्ट नहीं होंगे।”

देखिए मुझे इसका उतना परवाह नहीं है कि क्या आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अधुरा सपना लेकर जी रहे है, या आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो विशेष रूप से वासना और बुरी इच्छा से ग्रस्त नहीं हैं, या आपके पास कुछ हद तक आत्म-नियंत्रण है। और आप एक निश्चित नैतिक स्तर पर जीवन जीते हैं, फिर भी आपकी मुख्य समस्या वही है:- पाप और अपराध, और इसी का चिन्ता और परवाह हमे सबसे अधिक होना है।

पतन के बाद से ही मनुष्यों ने परमेश्वर के खिलाफ अविश्वास और विद्रोह किया है, और उसके वचन को तोड़ा है, और पतित मनुष्य पापों में मरे हुए हैं (इफिसि 2:1),  और वह अनन्त नरक की ओर जा रहे हैं, और वह स्वभाव से ही क्रोध के सन्तान है (इफिसि 2:3), अतः मनुष्यों को इसी पापमय सथिति से बचाए जाने की आवश्यकता है।

सुसमाचार इसी प्राथमिक समस्या और मुद्दे को संबोधित करता है। मामले की सच्चाई यह है कि जब आप पाप और पाप की शक्ति और उसके दंड से और एक दिन उसकी उपस्थिति से बच जायेंगे, उसके बावजूद यह मुमकिन है कि आप इस जीवन मे अपने करियर के सपनों या अधुरे सपनों को कभी हासिल न कर पाएं। यह संभव है (यद्यपि हमारा आत्मिक लड़ाई और संघर्ष चलते रहेगा) कि इस जीवन मे हम कभी भी अपने जीवन की सभी पापपूर्ण प्रवृत्तियों और वासनाओं पर पूर्ण प्रभुत्व प्राप्त नहीं कर पाएंगे। लेकिन आपको इस जीवन मे कुछ हद तक विजय और जीत मिलेगी, क्योंकि जब आपका केन्द्र अनन्त विषय की ओर होता है, तो जो चीजें इस जीवन में पूरी न भी होतीं, वे उतनी मायने नहीं रखतीं। और जब आपको एहसास होता है कि आपके सभी पापो को पूर्ण रूप से क्षमा किया गया है और आपके पास आपके पापमय अभिलाषों पर विजय दिलाने के लिए पवित्र आत्मा की शक्ति है, तो इसमें इस जीवन मे एक हद तक आनन्द और जीत जरुर होती है, और उन कमजोर और बुरे आदत के व्यवहारों से भी निपटा जाएगा, लेकिन यह मुख्य और केन्द्रीय मुद्दा नहीं है। केन्द्रीय और सार्वजनिक समस्या पाप और अपराध है; पतित मनुष्यों का परमेश्वर के खिलाफ अविश्वास और विद्रोह, पतित  मनुष्य अपने पापों मे मृत और परमेश्वर के क्रोध के अधीन है।

स्थानीय कलीसिया को यह याद दिलाने की जरूरत है कि परमेश्वर ने अपने लोगों को क्या से बचाने के लिए अपने एकलौता पुत्र को जगत में भेजा है? और  वह मुख्य रूप से पाप है, यही मुख्य मुद्दा है, और सुसमाचार की उचित प्रस्तुति इस पर बात करता है।

और ठीक यही घोषणा को स्वर्गदूत युसुफ से करता है, “वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना, ((क्योकर उसका नाम यीशु रखा जाएगा?) क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा।” मत्ती 1:21

असली विनाशक पाप है और पाप के लिए अपराध एक वास्तविक अपराध है। मनोवैज्ञानिक या नकली अपराध नहीं, मनुष्य का स्वयं का लगाया गया अपराध नहीं, बल्कि पाप के खिलाफ परमेश्वर द्वारा ठहराया गया अपराध और दण्ड, जो एक मनुष्य को अनन्त नरक की ओर ले जाता है। उसी से लोगों को बचाया जाने, बचाने और उद्धार दिलाने की जरूरत है। और सुसमाचार को समझने के लिए हमें  यह बिल्कुल समझना चाहिए।

इसलिए यह अच्छी खबर, अति शुभ समाचार है, बड़े आनन्द का सुसमाचार है, जो सभी लोगों के लिए है, कि…. तुम्हारे लिये (तुम्हे तुम्हारे पापों से उद्धार करने) एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है। (लूका 2:11)

अतः “प्रभु यीशु मसीह पर विश्‍वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा।” प्रेरितों 16:31

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