1 यूहन्ना 1:1 ‘’परमेश्वर के अनन्त एंव जीवित वचन की वास्तविकता, विशेषता और निश्चयता।’’

1 यूहन्ना 1:1-4 ‘’जो आदि से था,  जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आँखों से देखा, वरन् जिसे हम ने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ – उस जीवन के वचन के विषय में, यह जीवन प्रगट हुआ, और हम ने उसे देखा, और उसकी गवाही देते हैं, और तुम्हें उस अनन्त जीवन का समाचार देते हैं जो पिता के साथ था और हम पर प्रगट हुआ – जो कुछ हम ने देखा और सुना है उसका समाचार तुम्हें भी देते हैं, इसलिये कि तुम भी हमारे साथ सहभागी हो; और हमारी यह सहभागिता पिता के साथ और उसके पुत्र यीशु मसीह के साथ है। और ये बातें हम इसलिये लिखते हैं कि हमारा आनन्द पूरा हो जाए।’’

यूहन्ना  कुछ इस रीति से कह रहे हैं कि ‘’इस लेख के द्वारा, हम तुमसे अनन्त जीवन के वचन का समाचार को देते है (घोषणा करते हैं) जो आदि से था, और हम पर प्रगट हुआ, जिसे हमने देखा, सुना और अपने हाथों से छुआ, और हमारा इस घोषणा का लक्ष्य है सहभागिता और आनन्द की पूर्णता।‘’

क्या सत्य का कोई बुनियादी, पूर्ण, अचूक, अधिकारपूर्ण, अपरिवर्तनीय देह है? हम आज ऐसे समय मे जी रहे है, जहा लोग बुनियादी, पूर्ण और अपरिवर्तनीय सत्य को नकारते है, लोगो को अपने मन के अनुसार जो सत्य लगता है, उसी को वे सत्य मान लेता है। यहातक की स्थानीय कलीसियाएं भी आज समावेशी हो गया है, कि वे, किसी भी प्रकार के विचारों के लिए खुला हुआ, स्वीकार्य और सहनीय है, चाहे वह विचार धाराएं गैर बाइबलिय ही क्यो न हो।

लेकिन यीशु मसीह के प्रेरितों ने एवं पवित्रशास्त्र के परमेश्वर प्रेरित लेखकों ने संपूर्ण रीति से उस सत्य के अपरिवर्तनीय और पूर्ण देह को लेकर आश्वासित और सुनिश्चित थे (कि वह सत्य बुनियादी, पूर्ण और अपरिवर्तनीय है) जिसे उन्होंने विश्वास और ऐलान किए, विशेषकर परमेश्वर के सुसमाचार, उद्धार का संदेश का सत्य को।

और इन्ही वास्तविकताओ को, विशेषकर यीशु मसीह के व्यक्ति एंव कार्य को केन्द्र मे रखकर, प्रेरित यूहन्ना, इस पहला पत्री को लिखना आरंभ करता है, यूहन्ना अपना लेख से यह प्रदर्शित कर रहा है कि..

  1. परमेश्वर के जीवित वचन अनन्त एंव अपरिवर्तनीय है। {1 यूहन्ना 1:1a}
  2. परमेश्वर के जीवित वचन सच्चा/ वास्तविक एंव ऐतिहासिक है।{1 यूहन्ना 1:1b}
  3. परमेश्वर के जीवित वचन का अभिव्यक्ति (प्रकटीकरण) और घोषणा । {1 यूहन्ना 1:2-3a}
  4. परमेश्वर के जीवित वचन के साथ और द्वारा सहभागिता {1 यूहन्ना 1:3b}
  5. परमेश्वर के जीवित वचन के द्वारा सच्चा और पूर्ण आनन्द {1 यूहन्ना 1:4}

इन्ही पांच केंद्रीय सत्य को हम 1 यूहन्ना 1:1-4 मे देख पाते है, जिनमे से हम आज केवल 1 यूहन्ना 1:1 को देखेंगे, कि परमेश्वर के जीवित वचन अनन्त एंव अपरिवर्तनीय है {1 यूहन्ना 1:1a}, और परमेश्वर के जीवित वचन सच्चा/ वास्तविक एंव ऐतिहासिक है।{1 यूहन्ना 1:1b}

  1. सबसे पहले, परमेश्वर के जीवित वचन अनन्त एंव अपरिवर्तनीय है। {1 यूहन्ना 1:1a}

  • 1 यूहन्ना 1:1a‘’ उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था….’’,

यहा वचनकेवल यीशु मसीह के व्यक्ति को नही लेकिन साथ ही साथ उसके सुसमाचार का संदेश को दर्शाता है परमेश्वर के पुत्र का ‘’सुसमाचार का संदेश’’, उद्धार का सुसमाचार को दर्शाता है, जिसका केंद्र है मसीह का व्यक्ति, वचन और समाप्त कार्य

  • आदि से था’’ :- यीशु मसीह का व्यक्ति और उसका सुसमाचार का संदेश अनन्त एंव अपरिवर्तनीय है

यीशु मसीह का व्यक्ति और उसका सुसमाचार का संदेश अनन्त है क्योंकि वह आदि से था, न ही केवल यूहन्ना और बाकी प्रेरितों के साथ सेवकाई के शुरुआत से, वरन जगत के उत्पत्ति से पहले ही से। जहा यीशु पिता के साथ मौजूद थे। 1 यूहन्ना 1:2 और यूहन्ना रचित सुसमाचार 1:1 इसका पुष्टि करता है, जहा हम यीशु के विषय मे यह कहते हुए पाते है ‘’…जो पिता के साथ था…’’ और प्रकाशितवाक्य 13:8 कहता है वह मेम्ने जो जगत की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है।

यीशु मसीह का व्यक्ति और उसका सुसमाचार का संदेश अपरिवर्तनीय भी है  ‘’जो आदि से था…’’ 1 यूहन्ना 1:1a

यीशु मसीह के सुसमाचार का संदेश समय के साथ नही बदल जाता, सच्चा शास्त्र सम्मत सुसमाचार वही है, जो वह आदि से था। शास्त्र का सच्चा सुसमाचार परमेश्वर का अनुग्रह का संदेश है (निर्गमन 34:6-7; इफिसि. 2:8-9), वह परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार है (मत्ती 3:2), वह यीशु मसीह का पूरा किया गया समाप्त कार्य का संदेश है (लूका 24:46-47), सुसमाचार केवल यीशु मसीह मे पाप क्षमा का और परमेश्वर से मेलमिलाप का संदेश है, सुसमाचार का संदेश लोगो को आदेश देता है कि वह मन फिराए और सुसमाचार पर विश्वास करे। (मरकुस 1:15; 4:17)

यूहन्ना के समय मे झूठे शिक्षको ने यीशु मसीह के ईश्वरत्व और  मानवता को नकारा, जो कि सुसमाचार का आवश्यक और अनिवार्य वास्तविकता है। लेकिन, सुसमाचार का संदेश अपरिवर्तनीय और चिरस्थाई है, इसमे कुछ भी जोड़ा या इस से कुछ भी घटाया नही जा सकता। बाइबल हर उस युक्तिओ पर अभिशाप का घोषणा करता है जो बाइबल का सच्चा सुसमाचार को छोड़ अन्य प्रकार के सुसमाचार का प्रचार करता है।

गलातियों 1:6-9 ‘’मुझे आश्‍चर्य होता है कि जिसने तुम्हें मसीह के अनुग्रह में बुलाया उससे तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। परन्तु वह दूसरा सुसमाचार है ही नहीं: पर बात यह है कि कितने ऐसे हैं जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। परन्तु यदि हम, या स्वर्ग से कोई दूत भी उस सुसमाचार को छोड़ जो हम ने तुम को सुनाया है, कोई और सुसमाचार तुम्हें सुनाए, तो शापित हो। जैसा हम पहले कह चुके हैं, वैसा ही मैं अब फिर कहता हूँ कि उस सुसमाचार को छोड़ जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो शापित हो।’’

1 यूहन्ना 1:1a ‘’ उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था….’’  इस स्पष्ट और सरल कथन के द्वारा यूहन्ना इस पत्री को आरंभ करता है, जहा वह यह सुनिश्चित और स्थापित करता है कि जीवन के वचन का सुसमाचार का संदेश अनन्त, चिरस्थाई और अपरिवर्तनीय है।यह समझौता न किया जाने वाला सुसमाचार है, एक इन्सान को उद्धार के लिए इसी सुसमाचार पर विश्वास करना है। क्या आप उद्धार के लिए, आज, अभी, इसी अनन्त और अपरिवर्तनीय सुसमाचार पर विश्वास करते है? जो सुसमाचार आदि से था………?

परमेश्वर के जीवित वचन अनन्त एंव अपरिवर्तनीय है, और साथ ही साथ परमेश्वर के जीवित वचन सच्चा/ वास्तविक एंव ऐतिहासिक है।

  2.  परमेश्वर के जीवित वचन सच्चा/ वास्तविक एंव ऐतिहासिक है।{1 यूहन्ना 1:1b}

  • 1 यूहन्ना 1:1b‘’…जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आँखों से देखा, वरन् जिसे हम ने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ……’’

झूठे शिक्षको ने यीशु के देह धारण और मानवता को इन्कार की, उन लोगो ने इस सच्चाई को इन्कार किया कि यीशु मसीह शरीर में होकर आए थे। (1 यूहन्ना 4:3), उनके अनुसार मसीह और मसीह के सुसमाचार को अनुभव करना एक रहस्यमय विषय है जो केवल आत्मिक रूप से उच्चे पद मे रहने वालों के लिए है। इसके विपरीत, यूहन्ना इन बातो को वृद्ध, जवान और बालको को संबोधित करते हुए लिखता है (1 यूहन्ना 2:12-14 ), कि वे जीवन का वचन (जो यीशु मसीह का व्यक्ति और कार्य, उनके सुसमाचार का संदेश) का वास्तविकता और सच्चाई और ऐतिहासिकता को समझ पाए।

यीशु मसीह देह-धारित परमेश्वर है, इसीलिए यूहन्ना 1:14 मे यूहन्ना लिखता है, और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्‍चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, ( not some myth) और हम ने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।” परमेश्वर का वचन देहधारी हुआ और  स्वयं को मनुष्य की तीन उच्च इंद्रियों (Senses:- श्रवण, दृष्टि और स्पर्श) के सामने प्रस्तुत कर दिया। यूहन्ना अपने इंद्रियों Senses से चार प्रकार से जीवन का वचन को समझा और बुझा और अनुभव किया।

‘’जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आँखों से देखा, वरन् जिसे हम ने ध्यान से देखा और हाथों से छुआ’’ 1 यूहन्ना 1:1b

  • ‘’जिसे हम ने सुना’’ 1 यूहन्ना 1:1b :- यूहन्ना और प्रेरितों ने यीशु मसीह का प्रचार और निर्देशों को सुना
  • ‘’जिसे हम ने सुना’’ (what we have heard :- यह Present Perfect Tense मे हैं), जिसका अर्थ यह है कि अतीत मे सुना जा चुका वह सच्चाई, जिसका प्रभाव आज वर्तमान मे भी है। यूहन्ना, यीशु मसीह के प्रथ्वी के सम्पूर्ण सेवकाई के दौरान मौजूद था, और उसने इस पत्री को उससे लगभग साठ साल बाद लिखा उसके बावजूद जो उसने यीशु मसीह से सुना था वह आज भी उसके हृदय मे ताजा और उज्जवल सत्य था। केवल सुना ही नही वरन ‘’और जिसे अपनी आँखों से देखा’’
  • ’और जिसे अपनी आँखों से देखा’’ 1 यूहन्ना 1:1b, (what we have seen with our eyes:- यह Present Perfect Tense मे हैं), जिसका अर्थ यह है कि अतीत मे हुआ घटना का प्रभाव आज वर्तमान मे भी बना है।
  • ‘’जिसे अपनी आँखों से देखा,’’ यूहन्ना ने वास्तविक रीति से देह धारित यीशु को अपने शारीरिक आँखों से देखा, यह किसी प्रकार का रहस्यमय अनुभव या सपना मे दर्शन नही था। यीशु कोई रहस्यमय छबि नही था, वरन वह देह-धारित परमेश्वर है। जो इतिहास के निर्दिष्ट समय मे पृथ्वी पर थे। जिनको उस समय के लोगो ने और यूहन्ना ने अपने शारीरिक आँखो से देखा।
  • ‘’…..वरन् जिसे हम ने ध्यान से देखा’’ 1 यूहन्ना 1:1b, जिसका अर्थ है कि चाहत और खोज के साथ ध्यान से देखते जाना, समान शब्द “beheld” “देखी” का उपयोग किया गया है यूहन्ना 1:14 मे। यीशु ने जिन चमत्कार और आश्चर्य कार्यो को किए है केवल वही तक देखना नही, वरन चाहत और अभिप्राय  के साथ यीशु के कार्यो के द्वारा यह देखना कि यीशु वाकई मे कौन है!! कही वर्षो तक यूहन्ना ने ध्यान से यह देख पाया  कि यीशु परमेश्वर है, कि वह प्रभु है, कि वह मसीहा है, कि वह उद्धारकर्ता है, जिनके पास चंगा करने का सामर्थ्य है, दुष्‍टआत्माओ को निकालने का क्ष्मता है, पाप को क्षमा करने का अधिकार है, अनन्त जीवन देने का सामर्थ्य और अधिकार है।
  • ‘’……और हाथों से छुआ’’ 1 यूहन्ना 1:1b

John Stott कहते है  ‘’देखना अधिक विश्वासप्रद (Compelling) था। लेकिन छूना भौतिक (देहधारण) वास्तविकता का निर्णायक प्रमाण था।’’

यह क्षणिक क्षण का सम्पर्क नही है। हाथो से छुना, यानी छूकर महसूस करना को दर्शाता है, जैसे एक अन्धा व्यक्ति छूकर महसूस करता है। वही शब्द यीशु मसीह द्वारा उपयोग किया गया था, बाइबल मे कही बार हम इस सत्य को देख पाते है

‘’मेरे हाथ और मेरे पाँव को देखो कि मैं वही हूँ। मुझे छूकर देखो, क्योंकि आत्मा के हड्डी माँस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो।” लूका 24:39

पुनरुत्थीत मसीह ने पुनरुत्थान के बाद   थोमा से कहा, “अपनी उँगली यहाँ लाकर मेरे हाथों को देख और अपना हाथ लाकर मेरे पंजर में डाल, और अविश्‍वासी नहीं परन्तु विश्‍वासी हो।” यूहन्ना 20:27

और यूहन्ना 13:23 मे लिखा है ‘’उसके चेलों में से एक जिससे यीशु प्रेम रखता था, यीशु की छाती की ओर झुका हुआ बैठा था।’’

यह सारा सत्य इस सच्चाई का पुष्टि करता है कि परमेश्वर के जीवित वचन वास्तविक और ऐतिहासिक है।

John Stott कहते है ‘’यद्यपि यह छूनावाक्य का शिखर है, लेकिन देखना‘ (जो पहले तीन पदो में चार बार दोहराया गया है) पर जोर दिया गया है, शायद इसलिए कि यह विशेष रूप से दृष्टि है जो लोगों को गवाह के योग्य बनाती है।’’

इस देखने, मे ध्यान से देखना भी शामिल है, जो केवल शारीरिक दृष्टि को नही लेकिन किसी का वास्तविकता को पहचानना को भी दर्शाता है, जैसे यूहन्ना ने यीशु को केवल एक चमत्कार कार्यकर्ता या गुरु के रूप मे नही देखा, वरन चाहत और अभिप्राय और इरादे के साथ यीशु के कार्यो के द्वारा यह देखा कि यीशु वाकई मे कौन है!!

आज आप यीशु को किस दृष्टि से देखते है? क्या वह आपके लिए केवल एक आश्चर्य कार्यकर्ता है? या केवल शारीरिक चंगाई प्रदान करने वाला? या केवल  आपके और मेरे भौतिक जरूरतों को पूरा करने वाला?

इसपर कोई शक नही है कि यीशु अपने अनुग्रह मे आकर लोगो के शारीरिक जरुरतों के प्रति सक्रिय है, और वह आश्चर्य कार्यकर्ता है, वह चमत्कार करता है, लेकिन यह काफी नही है कि यीशु को केवल एक आश्चर्य कार्यकर्ता के रुप मे देखकर उनके पास आना। क्योंकि यीशु ने स्वंय को परमेश्वर होने का दावा किए है, उन्होंने  दावा किए है कि वही एकमात्र मार्ग है पिता के पास पहुंचने का। क्या आप शास्त्र के द्वारा यीशु मसीह को इस रूप मे देखते और विश्वास करते है? जैसे बाइबल उसे हमारे सामने प्रदर्शित करते है?

यह बहुत अवश्यक है कि हम यीशु की व्यक्ति और उनके समाप्त कार्य और उनके सुसमाचार का संदेश को शास्त्र सम्मत रीति से समझे और विश्वास करे; कि परमेश्वर का जीवित वचन अनन्त, अपरिवर्तनीय, वास्तविक और ऐतिहासिक है।

 

इस उपदेश को आप इस लिंक मे जाकर देख और सुन सकते है।

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